वह एक सुनसान इलाका था। आबादी से दूर शहर के एक कोने में एक बंद कारखाना। तीस सालों से कारखाना बंद पड़ा है। उस वक्त यहाँ आग लग गई थी। उस हादसे में इस कारखाने के मालिक के साथ दो सौ से ज्यादा मजदूर भी मारे गए थे। उस हादसे के बाद भी एक आदमी ने इस जगह को खरीद लिया था। उसने यहाँ अपना ऑफिस बनाने की सोची थी। काफी दिनों तक काम चला था। अंदर कुछ छोटे कमरे भी बन गए थे। फिर एक दिन सब रुक गया, उस आदमी ने इस जगह को छोड़ दिया। तब से यहाँ कोई आता-जाता नहीं था, लेकिन सिर्फ लोगों की नजरों में। अब तो यहाँ शैतानों का डेरा था।
दोपहर दो बजे के आसपास एक काली रंग की गाड़ी, कारखाने के बाहर आकर रुकी। उसमें से तीन लोग बाहर आए। उनमें से दो लोग गाड़ी के पीछे की ओर गए और दरवाजा खोलकर शिव वो बाहर निकाला। वह अभी भी बेहोशी की हालत में था। उन दोनों ने मिलकर शिव को उठाया और उस तीसरे आदमी के पीछे चल पड़े। वह तीसरा आदमी कारखाने के अंदर चला गया। बाकी दोनों भी शिव को लेकर अंदर चले गए।
अंदर काफी अँधेरा था। कुछ छोटे रोशनदान थे, जिनकी वजह से चीजें देखने में कठिनाई नहीं हो रही थी। आगे जाकर कुछ दरवाजें दिखाई दे रहे थे।
"तुम दोनों इसे ले जाकर उस कोने वाले कमरे में बंद कर दो। मैं जाकर रघु भाई से मिलकर आता हूँ। और हाँ, पिछली बार भाई को बहुत गुस्सा दिलाया था तुम दोनों ने। इस बार ऐसा कुछ हुआ तो तुम तो गए।" उस आदमी ने उन दोनों को घूरते हुए कहा।
"भाई शंकर, तू जा अपना काम कर। हम डरे हुए लोगों को डरा कर क्या मिलेगा तुझे।" रॉकी ने विनती भरे स्वर में कहा।
"ठीक है। और तू, राजू, तू जल्दी से इसे अंदर रखकर भाई के पास आ।" शंकर ने शिव की ओर इशारा करते हुए कहा और वहाँ से चल दिया।
कुछ देर बाद शंकर रघु के सामने खड़ा था। रघु टेबल के पास कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसने लाल रंग का कुर्ता और जीन्स पहनी हुई थी।
"काम ठीक से हो गया ना?" रघु ने बिना किसी भाव से कहा।
"और वो रॉकी और राजू ने कोई गड़बड़ तो नहीं की इस बार?" रघु ने चिढ़ भरे स्वर में कहा।
"नहीं भाई। वो दोनों अभी उस आदमी को ठिकाने लगाने गए हैं।" शंकर ने कहा।
"अच्छा है। कम से कम एक काम तो सही किया उन गधों ने।" रघु ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
"व...वैसे भाई, अगला ग्रुप कब भेजना है?" शंकर ने हिचकिचाते हुए पूछा।
"अभी बॉस ने कुछ कहा नहीं है इस बारे में। मुझे लगता है अब आगे का काम टैब नहीं होगा, जब तक ये जंगल से मिली लाशों के किस्सा ठंडा नहीं पड़ जाता।" रघु ने कुछ सोचते हुए कहा।
"भाई काम हो गया।" राजू उस ओर आते हुए बोला।
"अरे! आइए शूरवीर राजू महाराज। कमाल कर दिया आपने? आखिर आपने कोई काम सही से कैसे कर लिया?" रघु ने व्यंग करते हुए कहा।
"अरे भाई........।" राजू ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अबे ओ, ज्यादा दाँत मत दिखा वरना एक थप्पड़ में सारे बाहर कर दूँगा।" रघु ने डपटते हुए कहा।
"इसके दाँत फिर आ जाएँगे। अभी दूध के दाँत हैं इसके।" शंकर ने हँसते हुए कहा।
रघु ने एक सर्द निगाह शंकर पर डाली। शंकर सकपका गया और सर नीचे करके खड़ा हो गया। राजू भी खुन्नस से शंकर को घूर रहा था।
"जाओ और जाकर अपना काम करो। वो लोग भी अब होश में आते होंगे। उन्हें खाना खिलाकर फिर से बेहोश कर देना।" रघु ने गंभीर स्वर में कहा।
राजू और शंकर वहाँ से चले गए। जाते-जाते भी राजू फुसफुसाए जा रहा था और शंकर को गालियाँ दे रहा था। उन दोनों को देखकर रघु ने अपना हाथ जोर से अपने सिर पर मारा।
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अभय, विराज और विकास उसी दिशा में बढ़े जा रहे थे। विकास पीछे बैठकर रुद्र की लोकेशन की जानकारी अभय और विराज को बता रहा था।
अभय ने अचानक गाड़ी रोकी और सामने की ओर इशारा करते हुए कहा, "वो देखो! रुद्र की बाइक गिरी है वहाँ पर।"
अभय की बात सुनकर विराज को विकास भी चौंक गए और सामने देखने लगे।अभय और विराज गाड़ी से नीचे उतरे और रुद्र की बाइक के आसपास की जगह को तलाशने लगे।
"जल्दी करो। रुद्र को यहाँ से बस तीन किलोमीटर दूर ले जाया गया है।" विकास ने गाड़ी की खिड़की से सिर बाहर निकाल कर कहा।
"तीन किलोमीटर? यहाँ से तीन किलोमीटर के आसपास एक फैक्ट्री है ना?" अभय ने विराज के साथ गाड़ी की ओर आते हुए कहा।
"हाँ। हो सकता है रुद्र और बाकी लोगों को वहीं रखा हो।" विराज ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा।
अभय ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की और विकास से पूछा, "विकास ये रुद्र की सटीक लोकेशन क्या है?"
"जीपीएस के हिसाब से रुद्र किसी कारखाने के आसपास है। या फिर हो सकता है उसी कारखाने में हो।" विकास ने कहा।
"वो जरूर वहीं होगा। उन अपराधियों के लिए उससे अच्छी जगह यहाँ आसपास और नहीं है। अभय तू जल्दी गाड़ी वहाँ ले चल।" विराज ने जोशपूर्ण लहजे में कहा।
अभय ने गाड़ी उसी दिशा में बढ़ा दी।
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"हमें अविनाश जी से मिलना है। उनका कैबिन कहाँ है?" विजय ने आर. एस. पैथोलॉजी की रिसेप्शनिस्ट से सख्त आवाज में पूछा।
विजय और उसके साथ खड़े दो हवलदारों को देख वो लड़की घबरा गई थी। उसने डरी हुई आवाज में कहा, "एक मिनट सर, मैं अभी अविनाश सर से बात करती हूँ।"
उस लड़की का हाथ फोन तक पहुँचता, इसके पहले ही विजय ने फोन पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "अ..अं....जितना कहा जाए उतना ही करिए। जल्दी बताओ अविनाश कहाँ मिलेगा?" विजय ने लगभग चिल्लाते हुए पूछा।
वो लड़की अब डर के मारे काँप रही थी। उसने धीरे से ऊपर वाली मंजिल पर इशारा किया। विजय बिना देर किए सीढ़ियों की ओर दौड़ता हुआ गया। ऊपर आकर विजय और उन हवलदारों ने यहाँ-वहाँ देखा और फिर उन्हें एक कमरा दिख गया, जिसपर अविनाश का नाम लिखा हुआ था।
विजय ने जोर से वो दरवाजा खोल दिया। अंदर अविनाश अपनी कुर्सी पर बैठा ऊँघ रहा था। अचानक से इतनी तेज आवाज सुन अविनाश हड़बड़ा गया और कुर्सी से असंतुलित होकर गिर पड़ा। विजय अविनाश के पास गया और उसका कॉलर पकड़कर उसे खड़ा किया और एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
"अरे अरे! ये क्या बदतमीजी कर रहे हैं आप? छोड़िए मुझे!" अविनाश ने विजय के मजबूत शिकंजे से खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा।
"मुँह बंद रख वरना अगली बार थप्पड़ नहीं सीधा गोली मिलेगी। चल हमारे साथ। और हाँ, पाटिल इसका फोन उठा लो टेबल पर से और पता करो ये किससे बातें किया करता था। और शिंदे तुम इस कैबिन की अच्छी तरह तलाशी लो। देखो कुछ मिलता है क्या।" विजय ने दोनों हवलदारों की ओर देखते हुए कहा।
"अरे लेकिन मैंने किया क्या है? और आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं?" अविनाश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
"तुझे लोगों की नौकरी लगवाने का बड़ा शौक है ना? इसलिए हम तेरे लिए भी कुछ अच्छा करना चाहते हैं। हम भी तेरी नौकरी लगवाएँगे, जेल में। वहाँ बर्तन धोने का काम करना। चल चुपचाप।" विजय ने कहा और अविनाश को खींचते हुए कैबिन से बाहर निकल गया।
इतना शोर होने की वजह से बाहर काफी भीड़ लग चुकी थी। विजय अविनाश को लेकर सीढ़ियों से नीचे चला गया। सभी अविनाश को घूरे जा रहे थे। दोनो हवलदार भी नीचे आ गए और विजय ने अविनाश को हथकड़ी पहनाकर गाड़ी में बिठा दिया। विजय की गाड़ी सीधा पुलिस स्टेशन की ओर चली गई।
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अभय ने गाड़ी को उस कारखाने से थोड़ा पहले ही रोक दिया ताकि कोई गाड़ी की आवाज सुनकर या गाड़ी को देखकर चौकन्ना न हो जाए। अभय, विराज और विकास गाड़ी से बाहर आ गए। विकास ने अपनी उँगली से एक ओर इशारा किया। वहाँ से कुछ दूरी पर झाड़ियों के उस पर कुछ दिख रहा था। अभय, विराज और विकास ने अपनी-अपनी बंदूकें कसकर पकड़ ली और तीनों दबे पाँव कारखाने की ओर बढ़ने लगे। उन्होंने देखा, उस वक्त एक आदमी कारखाने के बाहर खड़ा था। उसने हाथ में बंदूक पकड़ रखी थी और चौकीदार की तरह यहाँ-वहाँ देख रहा था। उसे देखकर विराज ने अभय को कुछ इशारा किया और अभय वहाँ से छुपते-छुपते पेड़ों की ओट लेते हुए कारखाने तक चला गया। अभय धीरे-धीरे उस आदमी की ओर बढ़ने लगा। उस आदमी की पीठ इस वक्त अभय के ओर थी, जिसकी वजह से अभय का काम और भी आसान हो गया था। अचानक अभय का पैर एक सूखे पत्ते पर पड़ गया और उसकी आवाज से वो गुंडा चौकन्ना हो गया और अभय की ओर घूम गया। अभय ने उसके कुछ करने के पहले ही अपनी गन के पिछले हिस्से से उसके सिर पर जोरदार वार किया। वह आदमी तुरंत बेहोश होकर गिर पड़ा। अभय ने इशारे से विराज और विकास को बुलाया। विराज ने आगे बढ़कर धीरे से कारखाने का दरवाजा खोला और अंदर झाँकने कि कोशिश की।
"कोई दिख तो नहीं रहा है। अंदर चलते हैं।" विराज ने फुसफुसाते हुए कहा और धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर चला गया।
अभय और विकास भी विराज के पीछे अंदर घुस गए। उन्होंने चारों ओर ध्यान से देखा। वहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था। बस थोड़ा आगे कुछ कमरे थे, जिन्हें बाहर से बंद किया गया था। एक मोटा-सा आदमी कुर्सी पर बैठकर सो रहा था, जिसे शायद उन कमरों की निगरानी के लिए रखा गया था। अभय आगे बढ़ा और उस आदमी की गर्दन पकड़कर एक ही झटके में मरोड़ दी। वह आदमी कुर्सी सहित गिरने ही वाला था कि विराज ने उसे संभाल लिया ताकि कोई आवाज ना हो। उसके बाद अभय, विकास और विराज ने धीरे-धीरे कुछ दरवाजे खोल दिए। उन कमरों में अगवा किए गए लोगों को रखा गया था। उन सभी कमरों में लोहे की रॉड लगी हुई थी, जो जमीन से जुड़ी हुई थी। उन लोगों के हाथों को उस रॉड से लोहे की चैन के जरिए बाँधा गया था। विकास जल्दी से बाहर गया और गाड़ी से गैस कटर लेकर आ गया। अभय, विराज और विकास ने धीरे-धीरे उन लोगों के हाथ खोल दिए। उसके बाद उन तीनों ने उन लोगों को जैसे-तैसे सहारा देकर एक कमरे में इकट्ठा किया। उसके बाद अभय ने आखरी दरवाजा खोला। उसने जैसे ही अंदर देखा उसके होश उड़ गए। विकास और विराज की हालत भी कुछ ऐसी ही थी, जो कि इस वक्त अभय के ठीक पीछे खड़े थे।
अभय, विराज और विकास तीनों रुद्र को छुड़ाने अंदर गए। उनका इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं गया कि अभी-अभी बाहर से किसी गाड़ी के आने की आवाज आयी थी। अभय रुद्र को होश में लाने की कोशिश कर रहा था, मगर कोई असर नहीं हो रहा था रुद्र पर। अब उनके गैस कटर की गैस भी खत्म हो चुकी थी। विराज ने चैन तोड़ने के लिए अपनी गन निकाली। विराज चैन पर गोली चलाता इसके पहले अचानक से उन तीनों को लगा कि कमरे में कोई और भी है। तीनों ने एक साथ पीछे मुड़कर देखा और चौंक गए। उनके पीछे चार गुंडे खड़े थे और उन चारों ने गन तान रखी थी।
"ऐ शंकर इन तीनों के हाथ से बंदूक छीन ले। साले ये पुलिस वाले बड़ा होशियार समझते हैं ना खुद को।" रघु ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा।
"ठीक है भाई।" शंकर ने कहा और अभय, विराज और विकास से जबरन उनकी बंदूकें ले ली।
"अब चुपचाप, बिना कोई होशियारी दिखाए एक कोने में खड़े हो जाओ। और रॉकी, तू जाकर उन लोगों को जहाँ रखा है उस कमरे में ताला लगा दे।" रघु ने कहा।
"अब जल्दी बताओ तुम लोग यहाँ तक कैसे पहुँचे? और मेरे सवाल का जवाब देने के बजाए कोई बकवास की ना, तो अभी के अभी इसकी खोपड़ी उड़ा दूँगा।" रघु ने रुद्र की ओर बंदूक तानकर कहा।
"नहीं! ऐसा कुछ मत करना। हम सब बताते हैं।" विकास ने विचलित होते हुए कहा। अभय और विराज भी असहाय नजर आ रहे थे।
"व.....वो बात ये है कि ये शिव नहीं है, ये एसीपी रुद्र है।" विकास ने रुद्र की ओर इशारा करते हुए कहा।
"क्या!!? इतनी चालाकी? अब तो तुम लोगों को खत्म करना ही होगा।" रघु ने गुस्से से कहा।
इन सब बातों के बीच किसी ने भी इस बात का ध्यान नहीं दिया कि रुद्र को होश आया रहा था। रुद्र ने धीरे से अपनी आँखें खोली और देखा कि उसके तीनों दोस्त वहीं खड़े थे। उनके सामने एक आदमी गन तानकर खड़ा था और उस आदमी के ठीक पीछे दो और लोग भी बंदूक लेकर खड़े थे। रुद्र ने महसूस किया कि उसके हाथ चैन से बंधे हुए हैं। उसे अभी भी सिर में हल्का दर्द हो रहा था। मगर उसकी आँखों में इस वक्त गुस्सा साफ देखा जा सकता था। अब रुद्र को पूरी तरह के होश आ चुका था। उसने पूरी ताकत लगाकर अपने हाथ छुड़ाने कि कोशिश की। चैन के दबाव के कारण रुद्र के दोनों हाथों की कलाई में घाव बन गया था। लेकिन अपनी चोट की परवाह किए बगैर रुद्र ने अपनी पूरी ताकत अपने हाथों में झोंक दी। रुद्र की मांसपेशियाँ काफी ज्यादा उभरी हुई नजर आ रही थी। अब रुद्र के हाथों से बहुत ज्यादा खून बह रहा था।
अचानक एक जोरदार आवाज आयी और सभी का ध्यान उस ओर चला गया। रुद्र के हाथों से चैन तो टूट गयी थी। रुद्र अब उठकर खड़ा हो चुका था। उसके दोनों हाथ उसके ही खून से भीगे हुए थे। रघु, राजू और शंकर कुछ समझ नहीं पा रहे थे। यहाँ अभय, विराज और विकास काफी उत्साहित दिख रहे थे। अभय ने बिना समय बर्बाद किए रघु के हाथ से गन छीन ली। विराज और विकास भी राजू और शंकर की ओर भागे, लेकिन वो दोनों चौकन्ने हो गए और उनकी ओर गन तान दी। रूढ़ ने मौके का फायदा उठाया एयर पास ही गिरा हुआ गैस कटर उठाकर शंकर के सिर पर दे मारा। राजू के कुछ समझने के पहले ही रुद्र ने उस गैस कटर को उसके हाथ पर फेंक दिया जिसकी वजह से उसकी बंदूक नीचे गिर गयी। रुद्र ने तुरंत बिजली की तेजी से एक लात राजू के पेट पसर मार दी।
अब राजू जमीन पर गिरा कराह रहा था। शंकर बेहोश हो गया था और रघु अभय के निशाने पर था। रॉकी, जो उन लोगों को कमरे में बंद कर लौटा ही था, अंदर का नजारा देखकर हड़बड़ा गया। उसने अपनी गन निकाल कर अभय के ऊपर गोली चलाने की सोची ही थी कि अचानक से एक गोली सीधा उसके सीने में घुस गई। वो गोली रुद्र ने चलाई थी। ये सब देखकर रघु डरने के बजाए और भी ज्यादा गुस्से में नजर आ रहा था।
"रुद्र तू ठीक तो है ना?" विराज ने रुद्र के सिर की चोट पर हाथ फेरते हुए कहा।
"हाँ, मैं बिल्कुक ठीक हूँ। ऐसी छोटी-मोटी चोट तो लगती ही रहती है। सबसे ज्यादा परेशान तो इस मूँछ ने किया है।" रुद्र ने कहा और नकली मूँछ निकालकर नीचे फेंक दी।
"मैंने हेडक्वार्टर में खबर कर दी है। बस कुछ ही देर में यहाँ गाड़ी आ जाएगी। फिर इन सबसे जेल में पूछताछ करेंगे।" विकास ने कहा।
"गुड। अरे विकास, एम्बुलेंस भी बुला ले। उन लोगों को जल्द से जल्द अस्पताल भेजना होगा। बाकी यहाँ जितनी लाशें हैं उन्हें भी मुर्दाघर भिजवा दे। तब तक मैं डॉक्टर शुक्ला को कह देता हूँ, जल्दी से अस्पताल पहुँचने के लिए।" विराज ने अपना फोन निकालते हुए कहा।
"तू चल बेटा, तेरी खातिरदारी तो अब जेल में होगी।" अभय ने रघु का कॉलर पकड़ते हुए कहा।
"तुम कुछ भी कर लो, हमारे बॉस को कभी नहीं पकड़ पाओगे।" रघु ने अकड़ के साथ कहा।
अभय ने उसे एक झन्नाटेदार थप्पड़ मारा और उसे खींचते हुए बाहर ले गया। रुद्र ने उस कमरे से निकलकर उस कमरे के ताले को ?%A
रतन कुमार
04-Dec-2021 05:57 PM
आपकी कहानी पूरी नही है
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